दंतेवाड़ा @ नपा दंतेवाड़ा के साप्ताहिक हाट बाजारों में व्यापार करने आए सब्जी विक्रेताओं से नगर पालिका का अस्थाई दखल शुल्क ठेकेदार के गुर्गो द्वारा अवैध रूप से डरा धमकाकर बाजार शुल्क वसूल किए जाने का मामला प्रकाश में आया है। जबकि वर्तमान में बाजार शुल्क ठेका पर पाबंदी कायम है।
गौरतलब है कि नगर के वार्ड नंबर 3कतियाररास में हर साप्ताह बुधवार के दिन एक बड़ा साप्ताहिक बाजार लगता है। उक्त बाजार में दंतेवाड़ा, गीदम समेत आसपास क्षेत्र से बड़ी संख्या में छोटे बड़े सब्जी विक्रेता अपना व्यापार करने पहुंचते हैं। गांवों से भी थोड़ी बहुत सब्जी व वनोपज लेकर ग्रामीण अपने गुजर बसर के लिये सामान बेचने आते हैं। बता दें कि पिछली भाजपा सरकार के दौरान ही हाट बाजारों एवं दैनिक बाजारों से बाजार शुल्क ठेका प्रथा को समाप्त किया गया था। वर्तमान में भी प्रदेश सरकार द्वारा बाजार शुल्क लेने के संबंध में कोई नया आदेश नहीं आया है। ऐसे में बाजार शुल्क अभी नहीं लिया जा सकता। लेकिन दंतेवाड़ा साप्ताहिक हाट बजाार में सब्जी विक्रेताओं से पूरे दबंगई के साथ अस्थाई दखल शुल्क ठेकेदार के इशारे पर उनके गुर्गे जबरन सब्जी बेचने वाले ग्रामीणों से बाजार शुल्क वसूल रहे हैं। पुछने पर तर्क देते हैं कि हम तो बाजार परिसर से बाहर बैठने वालों से ही शुल्क ले रहे हैं। बड़ा सवाल यह कि बाजार शुल्क ठेका ही जब बंद हो चुका है। नया ठेका अभी हुआ नहीं है ऐसे में सब्जी विक्रेताओं एवं गांव से आए कोचियों से शुल्क किस नियम के तहत और किसके इशारे पर लिये जा रहे हैं। वसूली पर्ची में नगर पालिका परिसद दंतेवाड़ा लिखा होता है और प्रत्येक कोचियों से 10 रूपए लिया जाता है। यह तो सीधे तौर पर रंगदारी वसूली का मामला बनता है। हद तो तब हो गई जब स्वयं पालिका अध्यक्ष ने ठेकेदार को फोन लगाकर पुछा कि किस नियम के तहत यह वसूली की जा रही है तो ठेकेदार का कहना था कि उनका अधिकार है बाजार परिसर के आसपास बैठने वालों से वसूली करने का। जबकि अस्थाई दखल शुल्क ठेका के तहत अभी वाहनों का ही पर्ची काटा जा सकता है। अब समझा जा सकता है कि पालिका के अंदर कैसे लोग प्रवेश कर चुके हैं। सब्जी बेचने आए कोचिए जब 10 रूपए शुल्क देने से मना करते हैं तो उन्हें डराया धमकाया जाता है और उनकी सब्जियां तक छीन लेने की धमकी दी जाती है बेचारे सीधे सादे ग्रामीण पैसे दे देनेे में ही अपनी भलाई समझते हैं। लेकिन यह गरीबों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है जो नगर पालिका के आड़ में किया जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक हर सप्ताह बुधवार साप्ताहिक बाजार से 15 से 20 हजार रूपए तक वसूले जा रहे हैं। वसूल किए गए यह रूपए कौन रख रहा है इसका हिसाब नगर पालिका के पास भी नहीं है तो सवाल यह कि आखिर वसूली के रूपए किसके जेब में जा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो पालिका के कुछ कर्मचारी इस अवैध उगाही के खेल में संलिप्त हैं। इस मामले में व्यापारियों का तर्क है कि गांव से सब्जी बेचने आने वाले कोचियों को बाजार के अंदर जगह नहीं मिलने से वे बाजार परिसर से सटे खाली जगहों पर बैठकर सब्जी बेचते हैं ऐसे में वे भी बाजार के ही व्यापारी कहलाएंगे। अब उन्हें जगह नहीं मिल पा रही है तो इसमें उनकी गलती नहीं पालिका को चाहिए कि उन्हें बाजार के अंदर जगह की व्यवस्था करवाए। अगर बाजार से बाहर भी वे बैठ रहे हैं तो भी उनसे शुल्क लेना नहीं बनता है। लेकिन दंतेवाड़ा पालिका क्षेत्र में अंधेर नगरी चौपट राजा की तर्ज पर काम चल रहा है। आए दिन पालिका के कर्मचारी सब्जी विक्रेताओं के साथ अभद्रता करते हैं। उनकी सब्जी की टोकरियां फेंकी जाती है। इस पूरे मसले का स्थाई हल पालिका को निकालना होगा अन्यथा आगे चलकर ग्रामीण सब्जी विक्रेताओं एवं पालिका के बीच संघर्ष बढ़ सकता है।
वसूली
मोबिन खान)
सीएमओ दन्तेवाड़ा
अस्थाई दखल शुल्क के तहत बाजार स्थल पर या सड़कों पर यहां वहां खड़े चार पहिये वाहनों से शुल्क लेना होता है। हाट बाजारों में व्यापार करने आए व्यापारियों से बाजार शुल्क ठेका वर्तमान में बंद है। कोचियों से नगर पालिका के नाम पर बाजार शुल्क लिए जाने का मामला संज्ञान में आया है। इसकी जांच करवाई जाएगी। गलत पाए जाने पर संबंधितों पर निश्चित रूप से कार्यवाही होगी।
(दीपक कर्मा)
अध्यक्ष
मैं इस समय जिले से बाहर हूं। मगर मेरी संज्ञान में यह मामला आया है कि बाजार में सब्जी बेचने आए ग्रामीणों से नगर पालिका का पर्ची देकर अनाधिकृत व्यक्ति द्वारा बाजार शुल्क वसूल किया जा रहा हैं जो पूरी तरह गलत है। बाजार ठेका पर अभी पाबंदी है ऐसे में कौन लोग हैं जो बाजार शुल्क के नाम पर राशि वसूल रहे हैं इसका पता लगवाएंगे। पालिका को चाहिए कि बड़े छोटे सभी व्यापारियों को बाजार स्थल पर जगह उपलब्ध करवाएं। जगह नहीं होने पर कोचिये सड़कों पर व खाली मैदान पर इधर उधर बैठते हैं इसमें उनकी कोई गलती नहीं बल्कि कमजोरी हमारी है कि हम उन्हें व्यवस्थित नहीं कर पा रहे। आखिर वे भी बाजार के ही व्यापारी कहलाएंगे ऐसे में उनसे शुल्क लेना सही नहीं है। इस संबंध में सीएमओ से चर्चा कर कोई रास्ता निकाला जाएगा।