दन्तेवाड़ा- (ओम जी की कलम से)
तिखुर और तिखुर की बर्फ़ी…..!
गर्मी के दिनों अक्सर तिखुर की चर्चा होती है। तिखुर के बारे में आप सभी को कुछ न कुछ जानकारी होगी। बहुत से लोगों ने तिखुर का शर्बत पिया होगा। बस्तर में तिखुर बहुतायत होता है। गर्मी के मौसम में हाट-बाजारों में स्थानीय ग्रामीण तिखुर बेचते हुये दिखाई पड़ते है।
तिखुर का एक छोटा सा पौधा होता है। जिसे यहां बस्तर में बाथरी के नाम से जाना जाता है। तीखुर (वानस्पतिक नाम: Curcuma angustifolia) हल्दी जाति का एक पादप है जिसकी जड़ का सार सफेद चूर्ण के रूप में होता है. इसके जड़ों में हल्दी अदरक की तरह कंद लगते है। उस कंद को ग्रामीण निकालकर पानी से धोकर साफ करते है। फिर उसे खुरदरे पत्थर से घिस घिस कर पाउडर का रूप दिया जाता है।
यह पाउडर सफेद रंग के छोटे छोटे दानों में तिखुर के रूप में बाजार में बिकता है। सफेद तिखुर पाउडर को पानी में घोलकर शक्कर मिला कर शर्बत बनाया जाता है। तिखुर ठंडई लिये होता है। तिखुर का शर्बत पुरे तन में ठंडे पन का अहसास कराता है। गर्मी के दिनों में तिखुर का यह ठंडा शर्बत सेहत के लिये फायदेमंद होता है। तिखुर से हलवा भी बनाया जाता है।
तीखुर की खासियत यह है कि इससे पाचन क्रिया तो ठीकठाक रहती ही है, गर्मियों में तीखूर से बनी शरबत पीने से लू नहीं लगती।
वैसे गर्मी के मौसम में बस्तर के हाट बाजारों में तिखुर मिल जाता है। इसकी कीमत लगभग 160 रू. किलो तक है। मैने चित्रकोट के पास भी तिखुर बेचते हुये ग्रामीण महिलाओं को देखा है। कभी चित्रकोट आयेंगे तो तिखुर लेना ना भूले और उससे शर्बत बनाकर जरूर पीयें।
ग्रामीण महिलाये हाट बाज़ार मे तिखुर की मिठाईया बना कर भी बेचती है. काफ़ी स्वादिष्ट होती है तिखुर की बर्फ़ी !
यहां आपको 40 रू. में एक सोली लगभग 250 ग्राम तिखुर मिल जायेगा, तिखुर के बारे में आप क्या जानते है ? इसका और क्या उपयोग एवं फायदे है ? जरूर बताईये अपने परचितो को। अधिक से अधिक लिंक शेयर करें।