दन्तेवाड़ा:-
जिला पंचायत चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद पार्टी के रीति नीति से पीड़ित निष्ठावानो में पनपते आक्रोश के चलते भाजपा के बाढ़ टूटने के संकेत..!
बड़ी सँख्या में बहुत जल्द भाजपा के लोंग सीपीआई ओर काग्रेस के हाथ थामें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.. जनपद पंचायत गीदम से इसकी शुरुआत हो चुकी.. जब भाजपा के जमीनी स्तर पर पकड़ रखने वाले भाजपा समर्थित जनपद सदस्य युवा दबंग राजेश कश्यप भाजपा के संग़ठन से रूष्ट होकर विक्रम मंडावी तथा तुलीका कर्मा के राजनीति परिपककता से प्रभावित होकर भाजपा को अलविदा कह दिया.. राजेश कश्यप जैसे आदिवासी जो कभी जिला अध्यक्ष चेतराम अटामी के खास लोंगो में थे.. उनका काग्रेस में जाना भाजपा के जनाधार के ग्राफ को कम तो करेगा ही..वही काग्रेस में शस्क्त आदिवासी नेताओ की संख्या में इजाफा होगा.. तथा गीदम विकास खण्ड में काग्रेस की मजबूत पकड़ भी बनेगी..जिला पंचायत में पलट गई बाजी के बाद भाजपा की शर्मसार स्थिति से निपटना जिला संग़ठन के लिये आसान इस लिए नही है क्योकि इसके पीछे सबसे बड़ा दोष जिला का संग़ठन जो है..ऐसे में कार्यकर्ताओ को समझाना शायद इनके बस में रह गया हो..? हवाओ का रुख बता रहा है की भाजपा के लिए आगामी कुछ दिन बड़े पीड़ादायी होंगे..? जब उनके अपने ही
“अलविदा भाजपा” कहते हुवे निकल ले..! सूत्रों की माने तो कुछ निर्वाचित प्रतिनिधि भी देर सबेर अलविदा कहने की तैयारी कर रहे है.. ऐसा अगर होता है तो जिले के इतिहास में भाजपा के इससे बुरे दिन शायद कभी नही आये होंगे..!ओर न भाजपाइयों ने कभी ऐसी कल्पना ही की होगी..?शायद वर्षो तक इस घटना को भाजपा न भूले..! अटल जी के शब्द आज भी मेरे कानों में गूंज रहे है उन्होंने कहा था.. हार के आगे जीत है..मगर वाह रे बीजेपी दन्तेवाड़ा का संग़ठन उन्होंने अटल जी के उस कथन को ही उलट दिया…
“जीत के आगे हार”बनाकर..
आज जिले के भाजपा के कार्यकर्ता तो कार्यकर्ता अटल जी की आत्मा भी रो रही होगी..!अब यह भी तय है क़ी जिला पंचायत तो जिला पंचायत अगली विधान सभा भी भाजपा दन्तेवाड़ा में इन घटनाक्रम के बाद ओर आने वाली घटनाओं के चलते अभी से हार चुकी है..!क्योकि भाजपा के निष्ठावानो को बहुत बड़ी निराशा के साथ हताशा जो हाथ लगी..!जिला पंचायत चुनाव में भाजपा के बेतुकी निर्णय के सम्बंध में जिला के जबाबदार इसे ऊपर का निर्णय बता रहे है.. वही ऊपर के लोंग जिला संग़ठन का निर्णय बता रहे है..एक दूसरे का निर्णय बताकर चमड़ी बचाने का प्रयास किया जा रहा है..? आखिर किसका निर्णय माना जाये..? जब दोनो स्तर पर एक दूसरे पर थोपा जा रहा है..अब तो शंका इस बात की हो रही है की न ये ऊपर का निर्णय था. न ये नीचे का निर्णय था ..तो क्या.
?इसे उदर【पेट 】का निर्णय समझा जाये..?इसका सही जबाब तो आज नही कल डना ही होगा..? अब तक इतनी बड़ी पराजय पर किसी ने भी नैतिक जबाबदारी नही ली क्यो..? जब पूरे जिले में भाजपा के निष्ठावानो में आक्रोश पनप रहा है… तो किसी को इस करारी हार की जबाबदारी लेनी होगी..? मगर अनुशासित पार्टी है ऐसी कल्पना कैसे की जा सकती है…!आखिर ताबूत में आखरी कील भी तो ठोकनी बाकी है..!

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