बीजापुर- ऐसे ही बस्तर में मौतें आम नहीं कहीं जाती हैं इसके पीछे कई कहानियाँ हैं कई घटनायें हैं प्यार है धोखा है साजिश है और आरोप हैं और लापरवाहियाँ हैं. कुछ योजनाबद्ध तो कुछ दुर्घटनावश। लेकिन इन सभी मौतों में एक समानता है मरने वालों में 95% फीसद आदिवासी है जो घने जंगलों के बीच गाँव में खेती किसानी करते जीता है जूझता है और इलाज़ के अभाव में मर जाता है. क़ानूनन किसी की हत्या पर आईपीसी की धाराओं में मामला पंजीबद्ध होता है जाँच होती है साबित हुआ तो न्यायालय सजा मुकर्रर करता है। लेकिन क्या अपने ड्यूटी टाइम में एक डॉक्टर का गंभीर बीमारी से पीड़ित अस्पताल पहुंचते मरीज की जांच के लिए ग़ैरमौजूद रहना और उस मरीज़ की मौत हो जाना सामान्य मौत है ? ख़ैर जो भी है एक मासूम हरीश उइका को लेकर पिता सोमलू उइका और पत्नी इसी आस में अस्पताल पहुँचे की डॉक्टर बचा लेंगे लेकिन डॉक्टर ख़ुद गैरमौजूद मिले. नतीजतन एक और मासूम ने दम तोड़ दिया. कुछ दिन पहले भी दुगाईगुडा पोर्टाकेबिन में अध्यनरत एक छात्र की वायरल फ़ीवर की दवाई खाने के बाद दूसरे दिन मौत हो गई। पोस्टमार्टम के बाद चेस्ट में पानी आना बताया गया जिस पर बीएमओ ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया था। जबकि पोर्टाकेबिन के बच्चों और अनुदेशक स्टाफ़ ने मौत वाली रात तीन बार दोस्त होना बताया था। 

नक्सल क्षेत्र के नाम पर सरकार काफ़ी गंभीरता से योजनाएँ बनाती है। लेकिन क्या इन योजनाओं और सुविधाओं का लाभ यहाँ निवास करने वाले बाशिंदों को मिलती हैं। मिलती भी हैं तो नाकाफ़ी। आज बीजापुर जिले के आवापल्ली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टर्स की गंभीर लापरवाही निकलकर सामने आई। 

मंगलवार सुबह करीब 8 बजे सोमलू उइका अपने बीमार मासूम बच्चे  हरीश उइका और पत्नी को लेकर नक्सल प्रभावित गांव नेंड्रा से बाइक में आवापल्ली अस्पताल पहुंचा जहाँ कोई डॉक्टर और स्टाफ मौजूद नहीं थे। फर्श पर पोछा लगा रहे चपरासी ने कहा कि डॉक्टर दस बजे आयेंगे तो वो इंतेजार करे। खाली पेट रहे उइका सोमलू अपने पत्नी के लिये नास्ता लेने बाजार निकल गया। बाजार से जब वो नास्ता लेकर लौट रहा था तब उसकी पत्नी मासूम बच्चे को कंधे पर लिए रोती बिलखती वापिस लौट रही थी। पति ने पूछा क्या हुआ तो पत्नी ने रुआंसा होते बताया की बच्चे की मौत हो गई और कोई भी अस्पताल में नहीं मिला जिसने बच्चे की इलाज की हो। 

अपने मासूम के शव को लेकर पति पत्नी बाइक से ही घर के लिए निकल गए। आवापल्ली में किसी ग्रामीण ने उन्हें रोककर मुक्तांजलि वाहन की व्यवस्था करवाकर गाँव भेज दिया। आदिवासियों के इलाज को लेकर अधिकारी कितने गंभीर हैं इस घटना से समझा जा सकता है। न मासूम को इलाज मिला, अस्पताल में न डॉक्टर मिला और न ही समय से एम्बुलेंस मिला। 

बीजापुर के मुख्यचिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी बी आर पुजारी ने इस पूरे मामले में अपना बचाव करते दिख रहे हैं। अधिकारी महोदय पूरा ठीकरा किसी झोलाछाप डॉक्टर पर लगाकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। सवाल उठता है की जब सीएमएचओ साहब को पता है झोलाझाल अनाधिकृत डॉक्टर के इलाज से मौत हुई है तो उस पर तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। या फिर झोलाछाप डॉक्टर उसके इलाज के लिए ले रहे फीस का कुछ हिस्सा जिम्मेदारों तक पहुंचा रहा है। डॉक्टर साहब ने बताया की वे ये भी मानते हैं की ऐसे झोलाछापों पर कार्रवाई करने से फ़ोन आ जाते हैं तब स्तिथि ज़्यादा गंभीर हो जताई है। 

The Aware News