पवन दुर्गम, बीजापुर : द अवेयर न्यूज़ ने बीजापुर जिले में झोलाछाप डॉक्टरों की बल्ले बल्ले, मासूमों की मौतों के बाद भी मूकदर्शक बना स्वास्थ्य महकमा शीर्षक से प्रमुखता से खबर प्रकाशित की थी। जिसमें बीजापुर जिला मुख्यालय सहित चारों विकासखंडों में झोलाछापों के ईलाज से लोगों को हो रहे घातक परिणाम और स्वास्थ्य महकमे के संज्ञान में होकर भी कार्रवाई में देरी के पीछे की मंशा पर सवाल उठाए गए थे। 

खबर प्रकाशित होने और सोशल मीडिया में वायरल होने के कुछ घंटों बाद ही स्वास्थ्य विभाग ने पुलिस अधीक्षक कार्यालय और खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय बीजापुर से लगकर अधूरे कंस्ट्रक्टेड बिल्डिंग में संचालित एक अस्पताल पर छापामार कार्रवाई की है। अस्पताल का संचालक स्वय एक सरकारी मुलाजिम है जो फार्मसिस्ट के पद पर बीजापुर जिले में पदस्थ है। इसके कुछ महीने पहले भी इसी अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग ने छापामार कार्रवाई करके अस्पताल को बंद करवाया था। बावजूद इसके कुछ ही दिनों में संचालक ने दोबारा अस्पताल शुरू कर दिया। इससे स्पष्ट है कि संचालक को किसी सफेदपोश का संरक्षण है या विभाग में ही कोई विभीषण है जो अपना खुराक संचालक के यहाँ से पूरा कर रहा है और कार्रवाई के बाद भी अस्पताल संचालन करने की बैकडोर से अनुमति दिलवा रहा है। CMHO डॉ बी आर पुजारी ने बताया कि छापे में दवा, ब्लड टेस्ट मशीन जब्त किया गया है। संचालक रमेश मिश्रा मौके से नदारद रहा। अभी रमेश मिश्रा जो मूल रूप से पेशे से फार्मासिस्ट है वो निलंबित है। थाने में एफ आई आर दर्ज की जाकर कार्रवाई की जा रही है.

सरकारी मुलाजिम का यूँ सालों तक निजी अस्पताल खोलकर ईलाज करते जाना और मरीजों के जान से खिलवाड़ करना और कार्रवाई के बाद दोबारा अस्पताल शुरू हो जाना पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान है. आखिर कौन और कैसे संचालक को ऐसे मनमानी की इजाजत दे रहा था। 

बीजापुर के सी.एम.एच.ओ डॉ बी आर पुजारी ने दो दिन पहले ही मीडिया को दिए अपने बयान में झोलाछाप डॉक्टर के यहाँ कराये ईलाज से नेड्रा के मासूम हरीश की तबीयत बिगड़ने की बात कही थी। खबर लगने के तत्काल बाद सीएमएचओ पुजारी का एक्शन में आना दर्शाता है अभी जिले से झोलाछापों की छुट्टी होना तय है। लेकिन आस्तीन के सांपों से भी साहब को दो चार होना पड़ेगा क्योंकी जिस अस्पताल संचालक के यहाँ छापा मारा गया वहाँ व्यवस्थित साजो सामान और मरीज मौजूद थे। कई ग़ैर सरकारी और सरकारी मुलाजिम भी हैं जो ड्यूटी ख़त्म होते ही नगर के तंग गलियों और गाँवो की और झोला उठाकर फ़क़ीर की तरह चल पड़ते हैं और शाम ढलते ढलते हज़ार पाँच सौ लेकर लौटते हैं जो रोज का रूटीन है यही सीएमएचओ साहब के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती हैं। अब देखना होगा साहब की पैनी नजर कब तक इन पर पड़ती है और कब झोलाछापों को नापते हैं। या विभागीय सूत्रों के दम पर झोलाछाप अपना  खेला कर जाएँगे। 

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