दंतेवाड़ा@ पशुधन विकास विभाग अपने काले और घृणित कारनामो के लिए दंतेवाड़ा जिले में सुर्खियां बटोर रहा है. लगातार पशुधन विकास विभाग के प्रभारी डीडी अजमेर सिंह कुशवाहा की विभागीय योजनाओं में खामियां उजागर हो रही है. सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं की हक़ीक़त दंतेवाड़ा जिले में भी उजागर हो रही है। पशुधन विभाग दंतेवाड़ा के डीडी प्रभारी अजमेर कुशवाहा के के खिलाफ 6 जून 2020 को मंत्री रविन्द्र चौबे से शपथ पत्र में दर्जन भर महिलाओं ने विभागीय गड़बड़ियों को उजागर करते हुए शिकायत की थी.मगर यहाँ भी राज्य स्तर की जांच हुई भी और वह दब भी गई.
दरअसल कड़कनाथ पालन कर महिलाओं को आर्थिक रूप से सुदृढ करने विभाग ने बड़ी तैयारियां कर रखी थी। इस योजना को लेकर महिलाओं में शुरूआत में जमकर उत्साह देखा गया। लेकिन चंद महीनों में महिलाओं का उत्साह और योजना दोनों ही ठंडे बस्ते में चले गये। हितग्राहियों को चूजों की पहली खेप देने में विभाग ने देर नहीं की, साथ ही दाना भी उपलब्ध कराया, लेकिन समय बीतने के साथ हितग्राही दूसरी खेप की मांग करने लगे तो अफसरों ने गोलमोल जवाब देना शुरू कर दिया। अधिकांश हितग्राहियों को न तो दूसरे, तीसरे खेप के चूजे मिले और न ही दाना मिल सका है।
गीदम में अपनी लागत से हितग्राहियों ने बनाया आदर्श शेड —-
इस योजना को लेकर महिलाओं में जमकर उत्साह इस बात का प्रमाण है कि इन्होने स्वीकृत शेड को स्वयं की राशि लगाकर और भी बड़ा बनाया और इसमें भविष्य को लेकर भी प्लानिंग करनी शुरू कर दी। गीदम हितग्राही खिलेश्वरी साहू बताती है कि उन्हें पहली ही बार में दो खेप के चूजे एक साथ थमा दिये गये लेकिन यहां दाना केवल 60 बोरा ही दिया गया, जबकि योजना के अनुसार 120 बोरा दाना मिलना था । इसके बाद महीनो तक उन्हें चूजे नही दिये तो उन्होने अन्य हितग्राहियों के साथ इस बात की शिकायत मंत्री से कर दी। लगभग दर्जन भर हितग्राहियों ने प्रभारी डीडी अजमेर सिंह कुशवाह पर आरोप लगाते शिकायत की थी। इसके बाद इनमें से किसी भी शिकायतकर्ता को न तो चूजे मिले और न ही किसी प्रकार का चारा उपलब्ध कराया गया।
नहीं चाहिए ऐसी घटिया योजना
कड़कनाथ पालन के नाम पर छले गये हितग्राहियों का कहना है कि ऐसी कोई योजना उन्हें नहीं चाहिए जिसमें खुद के पैसे लगाने के बाद भी उन्हे नुकसान उठाना पडे। हितग्राहियों ने बताया कि न तो उन्हे पर्याप्त चूजे मिले और न ही पर्याप्त दाना दिया गया। जिस योजना से वे आर्थिक लाभ लेना चाहते थे उस योजना से उन्हें नुकसान उठाना पड़ा है। कई हितग्राहियों ने तो अनुदान राशि भी कर्ज लेकर चुकायी है।
शेड बनाने खर्च किये थे 3 लाख
खिलेश्वरी साहू ने बताया कि उन्होंने सोचा था कि इस योजना से वो अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर कर लेंगी। इसके लिए उन्होंने शेड में अतिरिक्त तीन लाख खर्च कर कॉलम और बीम का मजबूत स्टक्चर तैयार किया, ताकि शेड लंबे समय तक चले, लेकिन उन्हें योजना का पूर्ण लाभ नहीं मिला। पहली बार में 628 चूजों में से केवल 100 ही बचे। बाकि चूजे दाने के अभाव में मर गए। बचे हुए 100 कड़कनाथ जब बेचने लायक हुए तो अजमेर सिंह ने मांग नहीं होने की बात कहते हुए लेने से मना कर दिया। जबकि पहले उन्होंने विभाग द्वारा खरीदी करने का आश्वासन दिया था। बचे हुए कड़कनाथ मर न जाए इसलिए बाजार में उन्हें औने-पौने दाम में बेचना पड़ा, जिससे उन्हे केवल 10-12 हजार ही प्राप्त हुए।
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