दंतेवाड़ा@ जिला पंचायत सदस्य रामू नेताम ने आज मीडिया में एक प्रेसनोट जारी करते हुये बुधवार को दो समुदायों के बीच गैर धार्मिक शादी से उपजे विवाद और तनावपूर्ण माहौल को लेकर एक प्रेसनोट मीडिया के हवाले से जारी किया है जारी प्रेसनोट में श्री नेताम ने कहा कि विगत कुछ वर्षों से देश के विभिन्न राज्यों में लगातार लव जिहाद के प्रकरण सामने आ रहे हैं ,इसकी वजह से न केवल दो समुदायों की बीच वैमनस्यता बढ़ रही है अपितु ये एक गंभीर संकट को भी आमंत्रित कर रही है ।
उन्होंने कहा कि लव जिहाद कोई आम प्रेम संबंध की तरह नहीं है ,इसे एक सुनियोजित षडयंत्र की तरह क्रियान्वित किया जा रहा है । क्योंकि कई मामलों में देखा गया है कि समुदाय विशेष के लडके पहले तो नाम बदलकर लड़की से मिलते हैं और जब लडकी पूरी तरह उनके मोहपाश में जकड़ जाती है तो उसे समुदाय विशेष के धर्म की प्रैक्टिस कराई जाती है ,क्या ये प्रेम है ??!
अब तो दंतेवाड़ा जैसे शांत और सांस्कृतिक रूप से वैभवशाली स्थान में भी ऐसे प्रकरण बढ़ने लगे हैं ।समुदाय विशेष के लोग जीविकोपार्जन के लिए दंतेवाड़ा जैसे छोटे कस्बे में आते हैं और यहां दूसरे धर्मों की लड़कियों को अपने प्रेम के जाल में फंसाकर ऐसे मामलों को अंजाम देते हैं ।
यह एक पैटर्न की तरह लगातार दंतेवाड़ा शहर में किया जा रहा है इसलिए इस पर कठोर कार्यवाही की आवश्यकता है ,विशेषकर प्रदेश सरकार को इस पर कानून लाना चाहिए ।
क्योंकि विवाह केवल एक लड़के और लड़की के बीच प्रेम संबंध से बना सामान्य रिश्ता नहीं होता है अपितु यह दो परिवारों का मेल है ।
विवाह एक पारिवारिक उत्सव भी है। एक ऐसा उत्सव है, जिसकी प्रसन्नता दूल्हा-दुल्हन से अधिक परिजनों को होती है। यह लोक-अनुभव से उपजा सामूहिक निष्कर्ष नहीं कि रिश्तों के निर्वहन में निजी सोच-स्वभाव रुचि-अरुचि के साथ-साथ कुल-परिवार की परंपरा, पृष्ठभूमि, परिस्थिति की भी अपनी भूमिका होती है ।
ऐसे में एक समाज की मान्यताओं और विश्वासों का भी हमें सम्मान करना होगा। तब तो और जब निकिता तोमर जैसे हत्याकांडों को सरेआम अंजाम दिया जाता हो।
माना कि विवाह दो वयस्कों की पारस्परिक सहमति का मसला है, पर जिस सहमति में वास्तविक पहचान ही छुपाकर रखी जाती हो, वह भला कितनी टिकाऊ और आश्वस्तकारी हो सकती है?
और जो लोग इसे मोहब्बत करने वाले दो दिलों का मसला मात्र बताते हैं, वे बड़ी चतुराई से यह सवाल गौण कर जाते हैं कि यह कैसी मोहब्बत है जो मजहब बदलने की शर्तो पर की जाती है?
निकाह के लिए मजहब बदलवाने की कहां आवश्यकता है? प्रेम यदि एक नैसíगक एवं पवित्र भाव है तो इसमें मजहब या मजहबी रिवाजों का क्या स्थान और कैसी भूमिका?
हमारी न्याय-व्यवस्था इस बुनियाद पर टिकी है कि दोषी भले बरी हो जाए, पर निर्दोषों को किसी कीमत पर सजा नहीं मिलनी चाहिए। इंसाफ के इसी फलसफे के अनुसार यदि लव-जिहाद के खिलाफ कानून बनने से एक भी मासूम बहन-बेटी की जिंदगी बर्बाद होने से बचती हो तो ऐसे कानून का बनना अत्यंत आवश्यक है और इसके लिए किसी भी समुदाय को आपत्ति नहीं होनी चाहिए । उक्त बातें जिला पंचायत सदस्य व दंतेवाड़ा भाजपा के जिला महामंत्री रामू नेताम ने जारी प्रेसनोट में कही है।