दन्तेवाड़ा@वैश्विकमहामारी नावेल कोरोना बनाम २१दिन का लॉक डाउन देश थमा तो मदद के हाथ बढ़ने लगे, दन्तेवाड़ा जिले में प्रशासन से लेकर जनसेवी संस्थाये मैदानी क्षेत्रों में मोर्चा संभाल ली है। बचाव का राहतकार्य गरीब लोगों को निशानदेही कर उन्हें मदद करने का लक्ष्य रखा गया, और उस मदद की बहुत सी तस्वीरे शोसल मीडिया पर तैरने लग गयी। अब तो मददगारो की लिस्ट देखकर चयन करने में भी दिक्कतें आ रही है, किसे समाचार में जगह और कितनी दी जाये.
मुझे २००५ सलवा जुडूम का ओ दौर अचानक याद आ गया जब जुडूम आंदोलन में आदिवासी नक्सलियों के खिलाफ लामबंद होकर मोर्चा खोल दिये और सरकार भी मदद में कोई कोर कसर उस दौर में नही छोड़ रही थी. फिर जुडूम शरणार्थियों के नाम पर रशद, राशन और मुफ्त सामानों की बंदरबांट का जमकर खेल चला। शरणार्थियों के पास अगर ३०% राशन और मदद पहुँचती थी तो ७०% मददगार सिंडीगेट हजम कर जा रही थी।
कुछ ऐसे ही हालात अब भी नजर आते है, गरीब निर्धनों की जरूरत है आपका राशन लेना, पर आपकी क्या जरूरत है राशन देते वक्त या मदद करते वक्त तस्वीरे खिंचवाना, शायद राजनीति हर जगह चरम पर है चाहे वह मानव जीवन संकट काल का ही क्यो न हो, कहि भूपेश सरकार के झोले है मदद में तो कही मोदी राशन का थैला।
आखिर ऐसा क्यो ? ये एक बड़ा सवाल है मुझे खुशी है कि मदद करने लोग आगे आ रहे है पर दुःख भी इस बात का है कि मदद के साथ गरीबो के चेहरों की सेल्फी लेना नही भूल रहे।