दन्तेवाड़ा@ दिनेश शर्मा की कलम से

दन्तेवाड़ा विधान सभा चुनाव में प्रमुख दोनो राजनीति पार्टियो ने अपने नेताओं के शहादत को चुनावी मुद्दा बनाकर विजय हासिल करने के लिये मैदान में है..!स्थानीय मुद्दे इस उप चुनाव में पुरी नदारत है..! शायद स्थानीय मुद्दे पर न तो काग्रेस ने अब तक अपना मुंह खोला और न भाजपा ने हालांकि अजित जोगी कुछ स्थानीय मुद्दों पर बात कर रहे है..मगर वो मैदानी पकड़ में काफी पीछे है..!दन्तेवाड़ा उप चुनाव में मुख्य रूप से भाजपा और काग्रेस उमीदवार के बीच कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है..!दन्तेवाड़ा की जनता से शहादत के नाम पर वोट मांगने वाली प्रमुख पार्टियो से उम्मीद थी की वो वर्षो से जूझ रहे दन्तेवाड़ा के विषय में वैन पुत्रो के दर्द को भांपते हुवे उनकी समस्या के समाधान के लिये.. उनके हित मे.. कोई तो राजनीति पार्टी स्थानीय मुद्दे पर चुनावी घोषणा करेगी..! पीढ़ी दर पीढ़ी राजाओं के समय से मसायदी नक्शो पर कृषि करने वाले दन्तेवाड़ा विधान सभा के 94 ग्रामो के आदिवासी आज भी बंदोबस्त की गलतियों के चलते अपने पैतृक खेत खलिहाल की काश्त भूमि पर खेती जरूर कर रहे..मगर राजस्व रिकार्ड में आज भी उक्त किसानों की उपजाऊ भूमि काबिल काश्त भूमि यानि शासकीय भूमि दर्ज है.. उन्हें अब तक मालिकाना हक नही मिला.. उन आदिवासियों की कई पीढ़ियां खेती किसानी करते करते मर खप गये..!

94 ग्रामो के दर्द पर राजनीति पार्टियो की नजर क्यो नहीं जा रही..? कोई भी राज नेता अपना मुंह क्यो.? नहीं खोल रहा..?? हजारो मतदाता जो आज भी उस पीड़ा को झेल रहे है… ओर कब तक उस पीड़ा को झेलेंगे..? दर असल इतनी गहराई ओर निचले स्तर के दर्द का आभास तभी होता है जब आप उस आखिरी छोर पर खड़े वन पुत्र के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करे..!वन भूमि के पट्टे की बात हुई.. उन्हें मालिकाना हक मिला..!मगर उन अभागो को नही मिला जो राजाओं के समय से मसायदी नक्शो पर खेती किसानी कर अपना जीवन चला रहे थे..! केडस्टल सर्वे की गड़बड़ी के चलते कई पीढ़ी खपने के बाद भी अभागे वन पुत्रो को मालिकाना हक से वंचित होना पड़ रहा है.. ये उन 94 ग्रामो के लोंगो का दुर्भाग्य है की आजादी के बाद न जाने कितने संसद विधायको को उन्होंने चुना.. मगर किसी ने भी उनके दर्द पर मलहम लगाने का प्रयास नही किया..!आज भी उन 94 ग्राम के लोंगो को उम्मीद है की कोई तो उनके हित की बात करेगा… उनके साथ कभी तो न्याय होगा..!दुख इस बात का है की वर्तमान उप चुनाव में दोनो राजनीति पार्टी शहादत के नाम पर चुनाव में विजय फताका लहराने का सपना सँजो रहे है..!मगर उन 94 ग्रामो के लोंगो के सपने टूटकर बिखर रहे है.. जिनकी कई पीढ़ी उस भूमि पर खून पसीने बहाकर मर खप गई…उनकी कास्त भूमि आज भी राजस्व रिकार्ड में शासकीय भूमि के नाम पर दर्ज है..शायद 94 ग्रामो के उन प्रभावित आदिवासियों का दुर्भाग्य ही कहा जाये की उन्हें मतदान करने का मौलिक अधिकार तो प्राप्त है..मगर जिस भूमि को पीढ़ी दर पीढ़ी काश्त करते आ रहे है उसका मालिकाना हक का आधिकार नही है.!आखिर इस मर्ज का ईलाज कोई तो करे..! मगर वाह रे हमारे राजनीति पार्टी के कर्ण दाताओं कोई भी उन 94 ग्रामो के वन पुत्रो के आंसुओं को पोछने की कोशिश नही की..! इससे बड़ा दुर्भाग्य ओर क्या हो सकता है उन प्रभावितों का..?ये न भूले की इनकी एकता चुनावी गणित को बिगाड़ भी सकती है ओर बना भी सकता है..!

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