दन्तेवाड़ा-@ बैलाडीला एनएमडीसी संचलित लोह अयस्क निपेक्ष १३ के निजीकरण और अडानी कंपनी के हस्तक्षेप का विरोध इनदिनों सुर्खियों में तब आया जब दाल-चावल की पोटली लेकर 34 पंचायतो के ग्रामीण पंचायत संघर्ष समीति के साथ मिलकर अनिश्चितकालीन घेराव के लिये किरंदुल चेक पोस्ट पर डेरा डाल दिये। आंदोलन की खबरें लगातार १३नम्बर के विरोध और आदिवासियों की आस्था का प्रतीक नंदराज पहाड़ और पिट्टर मेटा पर मीडिया से जन जन तक पहुँचने लगी। 7 दिन के आंदोलन में ही सरकार ने १३नम्बर डिपाजिट काम ब्रेक, अवैध कटाई और फर्जीग्राम ग्राम सभा के 15 दिन में जांच का आदेश दिया जो आंदोलन की सबसे बड़ी जीत थी।
◆इसके बाद भी नेताओ का आरोप प्रत्यारोप जारी
४-०७- २०१४ में हिरोली पंचायत की महिला सरपंच बुधरी द्वारा कथित ११४ ग्रामीणों की एक हिरोली ग्रामसभा का प्रस्ताव १३नम्बर लीज देने के लिए पास किया गया। जिसे कूटरचित फर्जी ग्रामसभा करार देते हुये, सवालों के घेरे में आदिवासी लीडर १३नम्बर खदान की लीज को लाकर खड़ा कर दिये है। मगर १सवाल यह भी उठता है कि बस्तर की राजनीति में भाजपा हो या कांग्रेस या फिर सामाजिक संगठन तमाम मंचो पर आदिवासी हितैषी नेता ही बैठे है। जो आदिवासी हक की लड़ाई बुलंद करने के लिए एकमंच भी समय समय पर एक होते रहे है।
आखिर 5 वर्ष तक हिरोली में हुई फर्जीग्राम सभा पर किसी नेता ने या फिर स्वयं हिरोली पंचायत की महिला सरपंचिका बुधरी ने क्यो ध्यान नही दिया या फिर ये मान लिया जाये कि जिस अडानी कंपनी का हस्तक्षेप छग सरकार के साथ शेयर पार्टनरशिप पर १३ नम्बर लीज खदान पर हुआ है। उसके लिए आयोजित कथित फर्जीग्रामसभा के पंचायत प्रस्ताव की जरूरत एक ही बार लगी। इन बीते पांच वर्षों में कभी प्रशासन को जरूरत नही हुई।
कही हिस्से के किस्से तो नही छिपे
१३नम्बर खदान में आस्था का विरोध जनमानस में नेताओ के सपोर्ट से जमकर किरन्दुल में दिखा। मगर अगवाई करने वाले कुछ मुख्य चेहरों में अब फ़ीचर से गायब भी नजर आ रहे है। वही नये नये चेहरे विरोध का झंडा बुलंद करने को दिखाई दे रहे है। यही चुप्पी और शोर बहुत कुछ ईशारे करती है। वैसे इस आंदोलन में मीडिया ने निष्पक्षता से लगातार कवरेज कर आंदोलन की आवाज ऊंचे मंच तक पहुँचाती रही कही उसी सीढ़ी का इस्तेमाल कर खामोशी का कम्बल ढाकने की कोई अन्य वजह तो नही??

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